चार दिनों की, ये जिंदगानी
कर ले तू बंदे, मनमानी।
ना मिलेगी दोबारा जवानी
जी ले तू अपनी, जिंदगानी।
चार दिनों की---------------।
कभी इधर भटक, कभी उधर भटक,
कभी ऊपर जा, कभी गहरे जा,
कर ले तू अनुभव अचरज के सब,
फिर ना मिलेगी, जिंदगानी।
चार दिनों की------------------।
कर ले तू बंदे------------------।
जा प्रेम रसिक बन जा, बन भंवरा तू मंडरा,
ले जोग किसी का, जप नाम उसी का,
पर याद रहे तेरे कारण दिल टूटे ना कभी किसी का,
प्रेम अगन में जल के रच दे, तू एक नई कहानी।
चार दिनों की------------------------।
कर ले तू बंदे-------------------------।
- तरु श्रीवास्तव