शनिवार, 28 जुलाई 2018

कहानी

मुक्ति

'खुशियां आई घर-आंगन में
जब तूने मुझसे जनम लिया
निष्ठुर दुनिया के कारण ही
हाय, मैंने तुझको मुक्त किया'

बैरक में आई नई बंदी कमला, रूंधे गले से इस गीत को बार-बार दुहराती और फिर उसकी चित्कार से पूरा कारागार गूंज उठता. चित्कार के बीच ही कमला अपने दूधमुंहे पुत्र के लिए भी विलाप करती जाती.
कमला को कारागार में आए तीन से चार दिन ही हुए थे, लेकिन उसके रुदन ने बैरक की अन्य कैदियों के हृदय में उसके लिए सहानुभूति पैदा कर दी थी. किंतु किसी की भी हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि वह कमला के दु:ख का कारण पूछ सके. इतना तो सभी बंदी समझ चुकी थीं कि कमला ने अपने बच्चे को खोया है और उसका दूधमुंहा बच्चा घर पर अकेला है. मां की ममता से भरे हृदय का इस दु:ख से द्रवित होना स्वाभाविक ही था.

अंतत: कुमुदनी हिम्मत करके कमला के पास आई और उसके कंधे पर हाथ रख उसे सांत्वना देने का प्रयास करने लगी. सांत्वना पा कमला उससे लिपटकर जोर-जोर से रो पड़ी. पूछने पर बताया कि उसने अपनी बेटी की हत्या की है. इतना सुनते ही बैरक की अन्य बंदियों के चेहरे पर आश्चर्यमिश्रित भाव उभर आये. क्या, अपने ही हाथों अपने जाया की हत्या? कितनी निष्ठुर है तू, सहसा एक बंदी बोल पड़ी. पर न जाने क्यों, कुमुदनी को कमला की बातें अविश्वसनीय सी लगीं. उसने हठात उससे पूछ लिया -
'किसे बचाने के लिए स्वयं को हत्यारिन सिद्ध कर रही है?'
कमला ने कुमुदनी के प्रश्न का उत्तर दिए बिना अपनी गर्दन नीचे झुका ली.
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आज अदालत में कमला की पेशी थी. कठघरे में खड़ी कमला से वकील ने पूछा-
'तुमने अपनी बेटी की हत्या क्यों की?'
कमला ने लगभग चीखते हुए कहा- 'हत्या नही की है, मुक्त किया है उसे.'
वकील ने फिर पूछा- 'अपाहिज थी इसलिए हत्या की ना तुमने उसकी?'
कमला - 'अपाहिज थी इसलिए मुक्त किया उसे.'
वकील लगभग चिल्लाते हुए बोला- 'ये क्या मुक्त-मुक्त लगा रखा है, सीधे स्वीकार क्यों नहीं कर लेती की अपाहिज थी इसलिए अपनी बेटी की हत्या की तुमने?'
वकील की बातें सुन कमला चीख पड़ी और बोली, अपने प्राणों से अधिक प्रिय थी वह मुझे. अपाहिज थी तो क्या हुआ. मेरी पहली संतान थी. मां बनने का गौरव दिया था उसने मुझे. कब तक बचाती रहती उसे पुरुष नामक भेड़िए से. फिर न्यायाधीश की ओर देखकर कहने लगी -
'साब हम गरीब लोग हैं. मैं कोठी में काम करती हूं और मेरे पति भी काम के सिलसिले में बाहर रहते हैं. मेरे घर आने तक मेरी बच्ची अकेले रहती है. उस दिन जब मैंने सुना कि मेरी ही बस्ती की एक चार बरस की बच्ची को अगवा कर पांच लोगों ने उसके साथ दरिंदगी की, तो मेरा मन कांप उठा. मेरी बच्ची तो अपाहिज थी, वह बोल-सुन भी सकती थी. ऐसे में मेरी बच्ची के साथ भी तो........
फफक पड़ी थी कमला.
'बस, इसीलिए उस दिन मैंने अपनी ममता को कुचल  अपनी बच्ची को कुचलने से बचा लिया. साब, अब बच्चियों में भगवान नहीं दिखते लोगों को, केवल उनके अंग दिखते हैं. अब आप जाे चाहे मुझे दंड दें, मुझे स्वीकार होगा. एक निवेदन है, मेरे दूधमुुंहे बच्चे को मेरे पास रहने की आज्ञा दे दीजिए.'
कमला की बातों ने अदालत में सबको सन्न करके रख दिया था. न्यायाधीश महोदय ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा - 'कमला यह सच है कि हमारे समाज में बच्चियों के साथ क्रूरता बढ़ती जा रही है, लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं कि हम उनसे जीने का अधिकार छीन लें. तुमने हत्या की है और इसके लिए तुम्हें आजीवन कारावास का दंड दिया जाता है. एक बात और, चूंकि तुम्हारा बच्चा छोटा है इसलिए उसे तुम्हारे पास रहने की आज्ञा दी जाती है.'
अदालत के निर्णय के बाद कमला के चेहरे पर दु:ख के बावजूद हल्की मुस्कान तैर गई. इस मुस्कान का अर्थ बेटे का साथ मिलने की खुशी थी या बेटी को मुक्त करने की सजा पाने की, कौन जाने.
- तरु श्रीवास्तव


बुधवार, 11 जुलाई 2018

कविता

जाननेवाला
तुम्हें मेरे गालों,
मेरे बालों की चमक दिखाई देती है
चेहरे पर मासूमियत, उम्र पर विजय पा चुकी त्वचा,
कमनीय देहयष्टि दिखाई देती है
पर, आंखों की उदासी, अनकहे शब्द
जिसे मैं चाहती हूं तुम पढ़ लो
बिना कहे,
एक बार भी दिखाई नहीं देती,
कैसे मनाऊं मन को
कोई है, मुझे जाननेवाला भी.



- तरु श्रीवास्तव