सोमवार, 18 जून 2018

कविता

पिता
पिता मां नहीं होते
वे पालक होते हैं
जो गलाते हैं अपनी हड्डियां
दधिचि की तरह और
बन जाते हैं बज्र
ताकि मिल सके हमें सुरक्षा
हम पल-बढ़ सकें
खुले आकाश में
फैला सकें अपने पंख
पूरा कर सकें अपने सपने
बिना किसी भय, असुरक्षा के.
- तरु श्रीवास्तव