पिता
पिता मां नहीं होते
वे पालक होते हैं
जो गलाते हैं अपनी हड्डियां
दधिचि की तरह और
बन जाते हैं बज्र
ताकि मिल सके हमें सुरक्षा
हम पल-बढ़ सकें
खुले आकाश में
फैला सकें अपने पंख
पूरा कर सकें अपने सपने
बिना किसी भय, असुरक्षा के.
- तरु श्रीवास्तव
पिता मां नहीं होते
वे पालक होते हैं
जो गलाते हैं अपनी हड्डियां
दधिचि की तरह और
बन जाते हैं बज्र
ताकि मिल सके हमें सुरक्षा
हम पल-बढ़ सकें
खुले आकाश में
फैला सकें अपने पंख
पूरा कर सकें अपने सपने
बिना किसी भय, असुरक्षा के.
- तरु श्रीवास्तव