रविवार, 21 अक्तूबर 2018

लघुकथा


लघुकथा
अपना घर

क्यूं चले आते हो बार-बार यहां, जबकि तुम्हें इस घर में हजारों कमियां दिखायी देती हैं। अभी सुबह ही तो कितना कुछ बोलकर गये थे तुम। यह भी कहा था कि अब इस घर में कभी पांव तक नहीं धरोगे। पैसों की तो कोई कमी नहीं तुम्हें, कहीं भी रह सकते हो, फिर क्यों नहीं रह लेते किसी दूसरी जगह।
हां रह सकता हूं, किंतु, खुश नहीं रह सकता। लाख कमी के बावजूद भी यह संसार की सबसे सुंदर जगह है। क्योंकि यह अपना घर जो है।
- तरु श्रीवास्तव