मुक्तक
होश में भी किस कदर बेहोश हैं हम इन दिनोंहर शख्स में तेरा ही मुझे अक्स नजर आता है
इस कदर तू छा गया है मेरे ही वजूद पे
आईने में खुद की जगह तू ही नजर आता है
मुंह खोलते हैं जब भी कुछ बोलने को हम
मेरी जबां से अक्सर तू ही बोल जाता है
ये प्यार है, कशिश है तेरी असर का जादू
जो भी हो मुझे कुछ ना कुछ तो दे ही जाता है
तुझे भूलना भी चाहें तो भूल नहीं पाते
मेरी बंदगी में तू भी जगह पा ही जाता है
तू कहता है कि मुझसे तेरा नाता नहीं है
फिर क्यों मेरे हिस्से के आॅंसू पी तू जाता है
तेरी ऑंखों में बहुत कुछ अनकहा सा है
तू बोले या ना बोले पता चल ही जाता है
होश में भी किस कदर बेहोश हैं हम इन दिनों
हर शख्स में तेरा ही मुझे अक्स नजर आता है.
- तरु श्रीवास्तव