मन की शक्ति
काल के दुश्चक्र में फंसकर
कितने सपने टूट गये
कितने पीछे छूट गये
पर, हार ना मानी मन ने मेरे
रार ठान ली कालचक्र से
दृढ़ निश्चय कर संवारा मुझको,
नये-नये सपनों की पेटी
मुझको थमाया मन ने मेरे
कहा यही अब तेरा सहारा
तरे जीवन का उजियारा,
पर, मैं जैसे निस्पंद पड़ी थी
टूटे सपने, छूटे सपने
संग लिए हताश खड़ी थी,
आशा और निराशा के
बीच भंवर में झूल रही थी,
सूझ रहा था कुछ ना मुझको
जी जाऊं या, मर जाऊं,
तभी किसी शक्ति ने मेरे
अंतस को झिंझोड़ जगाया
राह मिल गयी जैसे मुझको
उत्साही सा जीवन हो गया
निकल पड़ी नये सपने लेकर
नवजीवन की नई डगर पर,
कई बरस जब बीत गये
टूटे-छूटे, नवल स्वप्न
जब सारे साकार हो गये
देखा तब अंतर में उतरकर
ना पूरब ना पश्चिम में,
ना उत्तर ना दक्षिण में,
ना जंगल ना झाड़ों में,
ना नदिया ना सागर में,
शक्ति मेरे मन में बसी थी,
शक्ति मेरे मन में बसी थी,
शक्ति मेर मन में बसी थी.
- तरु श्रीवास्तव
काल के दुश्चक्र में फंसकर
कितने सपने टूट गये
कितने पीछे छूट गये
पर, हार ना मानी मन ने मेरे
रार ठान ली कालचक्र से
दृढ़ निश्चय कर संवारा मुझको,
नये-नये सपनों की पेटी
मुझको थमाया मन ने मेरे
कहा यही अब तेरा सहारा
तरे जीवन का उजियारा,
पर, मैं जैसे निस्पंद पड़ी थी
टूटे सपने, छूटे सपने
संग लिए हताश खड़ी थी,
आशा और निराशा के
बीच भंवर में झूल रही थी,
सूझ रहा था कुछ ना मुझको
जी जाऊं या, मर जाऊं,
तभी किसी शक्ति ने मेरे
अंतस को झिंझोड़ जगाया
राह मिल गयी जैसे मुझको
उत्साही सा जीवन हो गया
निकल पड़ी नये सपने लेकर
नवजीवन की नई डगर पर,
कई बरस जब बीत गये
टूटे-छूटे, नवल स्वप्न
जब सारे साकार हो गये
देखा तब अंतर में उतरकर
ना पूरब ना पश्चिम में,
ना उत्तर ना दक्षिण में,
ना जंगल ना झाड़ों में,
ना नदिया ना सागर में,
शक्ति मेरे मन में बसी थी,
शक्ति मेरे मन में बसी थी,
शक्ति मेर मन में बसी थी.
- तरु श्रीवास्तव