गुरुवार, 27 सितंबर 2018

कविता

अभिलाषा
कर सकूं प्रकाशित
हर मन का कोना
भर सकूं आनंद
सबके हृदय में
गहर धंसे तिमिर को
तिरोहित कर
फैला सकूं उजियारा
जग के कोने-कोने में
बना सकूं ऊर्जावान सबको
धरती के कोने-कोन में उगा सकूं
खुशहाली की फसल
बदल सकूं
निराशा को आशा में
खिला सकूं मुस्कान
सबके अधरों पर
कुछ ऐसा करूं कि सब रहें प्रतीक्षारत
मैं अब आऊं, अब आऊं
मैं बन सकूं उस जैसा
कर सकूं उस जैसा
जैसा करती है
भोर की किरण.
- तरु श्रीवास्तव

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